Mahamrityunjaya Mantra Meaning and Benefits in Hindi (महामृत्युंजय मंत्र)
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।
महामृत्युंजय मंत्र को दुनिया का सबसे शक्तिशाली मंत्र कहा जाता है। महामृत्युंजय मंत्र हिन्दू धर्म में एक प्रमुख मंत्र है, जिसका सम्बन्द भगवान शिव से है। इस दिव्य मंत्र को सिद्ध करके मृत्यु पर भी विजय पायी जा सकती है, पुराने काल में जिस तरह देवताओ के पास अमृत था , तो दानवो के पास इस मंत्र की शक्ति थी। दानवो के गुरु शुक्र्राचार्य जी के द्वारा जब भी यह महामृत्युंजय मंत्र पढ़ा जाता था तो दानव दोबारा पुनः जीवित हो जाते थे। इस मंत्र को "मृत संजीविनी मंत्र " भी कहा जाता है।महामृत्युंजय मंत्र उत्त्पति
पौराणिक काल में शिवजी के अनन्य भगत मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे। विदाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था। मृकण्ड ने सोचा कि भगवान शिव तो संसार के सारे विधान बदल सकते है , इसलिए क्यों ना भोलेनाथ को प्रसन्न कर यह विधान बदलवाया जाये। ऋषि मृकण्ड ने भोलेनाथ की बढ़ी घोर तपस्या की। भोलेनाथ मृकण्ड के तप का कारण जानते थे इसलिए उन्होने मृकण्ड को शीघ्र दर्शन नहीं दिया , लेकिन भक्त ऋषि मृकण्ड की भक्ति के आगे आखिरकार भोलेनाथ झुक ही जाते है।भगवान् शिव प्रसन्न हो कर ऋषि मृकण्ड को दर्शन देते है। भोलेनाथ ने ऋषि मृकण्ड को कहा कि मैं विधान को बदलकर तुम्हे पुत्र प्राप्ति का वरदान दे रहा हूँ, लेकिन इस वरदान के हर्ष के साथ एक विषाद भी होगा। भोलेनाथ के वरदान से ऋषि मृकण्ड को एक पुत्र हुआ, जिसका नाम उन्होने मार्कण्डेय रखा। ज्योतिषो ने ऋषि मृकण्ड को बताया की आपका पुत्र मार्कण्डेय अल्पायु है। इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है।
मृकण्ड ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया। मृकण्ड ने अपनी पत्नी को यह दुखी समाचार सुनाया तब मृकण्ड ऋषि और उनकी पत्नी ने सोचा कि जिस ईश्वर की कृपा से हमें संतान की प्राप्ति हुई है वही भोलेनाथ इसकी रक्षा करेंगे , भाग्य को बदल देना उनके लिए सरल कार्य है। मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिव मंत्र की दीक्षा दी। मार्कण्डेय की माता बालक की उम्र बढ़ने से चिंतित रहती थी। उन्होंने एक दिन अपने पुत्र मार्कण्डेय को अल्पायु होने की बात बता दी। मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता पिता के सुख के लिए वह उसी सदाशिव भगवान से दीर्घायु होने का वरदान लेंगे , जिन्होंने उसे जीवन दिया है। बारह वर्ष पूरे होने को आये थे। मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे।
आयु समय पूरा होने पर यमदूत मार्कण्डेय को लेने आये। यमदूतो ने देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है तो उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की। मार्कण्डेय ने अखंड जप का संकलप लिया था , यमदूतो का मार्कण्डेय को छूने का साहस ना हुआ और वह लौट गए। उन्होंने यमराज को बताया कि वह बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए। इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वंय लेकर आऊंगा। यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंच गए।
बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा तो जोर -जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया। यमराज ने बालक मार्कण्डेय को शिवलिंग से खींच कर ले जाने की चेष्टा की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा। एक प्रचंड प्रकाश से यमराज की आंखे चुंधिया गयी। शिवलिंग से स्वयं भगवान् महाकाल प्रगट हो गए, उन्होंने हाथ में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान किया और पूछा तुमने मेरी साधना में लीन हुए भक्त को खींचने का साहस कैसे किया ?
यमराज महाकाल के प्रचंड रूप से कांपने लगे। उन्होंने कहा - प्रभु मैं आप का सेवक हूँ , आपने ही जीवो से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है। भगवान् महाकाल का क्रोध कुछ शांत हुआ तो बोले - मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूँ और मैंने इसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया है, तुम इसे नहीं ले जा सकते। यमराज ने कहा - प्रभु आप की आज्ञा सर्वोपरि है। मै आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित "महामृत्युंजय मंत्र" का पाठ करने वाले जीव को त्रास नहीं करुँगा।
महाकाल की कृपा से मार्कण्डेय दीर्घायु हो गए। उनके द्वारा रचित "महामृत्युंजय मंत्र" काल को भी परास्त करता है। सोमवार को "महामृत्युंजय मंत्र" का पाठ करने से शिवजी की कृपा प्राप्त होती है और कई असाध्य रोगों , मानसिक वेदना से राहत मिलती है।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।
महामृत्युंजय मंत्र के शब्दों के अर्थ
ॐ - पारब्रह्मॐ सनातन धर्म या हिन्दू धर्मो में एक पवित्र / रहस्यमय शब्द है।
त्र्यम्बकं - त्रि (तीन ) + अम्बक (नेत्र )
त्र्यम्बकं रूद्र या शिव का जिक्र करने वाली तीन आँखे है , जो समान गुण साझा करती है। (१ ) उनके 'विश्वरूप' या 'स्रवभौमिक रूप' में तीन आँखे प्रतीकात्मक रूप से सूर्य , चन्द्रमा और अग्नि का प्रतीक है। दिन में धूप , रात में चाँद और उनकी अनुपस्थिति में आग रौशनी का प्रतीक है। (२ ) आँखों की जोड़ी भौतिक दुनिया और उसके अनुभवो को दृष्टि देता है। तीसरी आँख आत्म -ज्ञान या स्वयं के ज्ञान का प्रतीक है जिसके माध्यम से व्यक्ति उच्च वास्तविकता को देखता है। कामदेव या मन्मथ इच्छा के देवता है जो हमेशा मन को शांत करते हैं और बेचैनी पैदा करते हैं।
यजामहे - हम पूजा करते है
यजामहे - हम आपकी आराधना करते है , श्रदा करते है , सम्मान करते है।
सुगन्धिं - मीठी महक , सुगंदित (आधात्मिक सार )
सुगन्धिं - सुगंद शब्द मंत्र में शब्द का मतलब शारीरिक सुगंद यानि की परफ्यूम से नहीं बल्कि चरित्र की खुश्बू से है। इत्र एक स्तोत्र से निकलता है और एक उचित दूरी तक फैलता है।
पुष्टिवर्धनम - पुष्टि (पोषण ) + वर्धन (बढ़ना)
पुष्टि - एक अच्छी तरह से पोषित स्थिति। सम्पर्ण , समृद्ध जीवन की परिपूर्णता।
वर्धनम वह है जो पोषण करता है , मजबूत करता है या पुनःस्थापित करता है।
उर्वारुकमिव - उर्वारु (खीरा , बड़ा ) + इव ( जैसा , सामान )
उर्वारुकमिव - उरवा का अर्थ है विशाल या बड़ा , शक्तिशाली या घातक। अरुकुम का अर्थ है बीमारी। इस प्रकार उर्वारुकमिव का अर्थ है घातक और अधिकता से होने वाली बीमारिया। कद्दू या खीरे (ककड़ी) की व्याख्या उदहारण के तोर पे दी जाती है। ये रोग तीनो गण के नकरात्मक प्रभावो के कारण होते है और इसलिए (१ ) अविद्या - अज्ञान या असत्य और (२ ) साद्रीपु - भौतिक शरीर की एक बाधा।
बन्धनान - बंधना
बन्धनान - बंध का अर्थ है संसार या सांसारिक जीवन का बंधन। ( मैं बंध गया हूँ ककड़ी की तरह एक बेल में। )
मृत्योर्मुक्षीय - मृत्यु (मौत ) + र्मुक्षीय (मुक्ति )
मृत्योर्मुक्षीय - नि :शुल्क हमें मौत के भय से मुक्त कीजिये।
मामृतात - मा (नहीं ) + अमृत (अजर , अमर )
मामृतात - हमें मृत्यु से मुक्त करें। (अमरता के लिए )
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